कई दिनों बाद इस ब्लाग पर कोई रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ।देर की वजह कुछ तो "समकालीन ग़ज़ल [पत्रिका] ","बनारस के कवि/शायर "में व्यस्तता थी;कुछ मौसम का भी असर था।दरअसल गर्म मौसम में नेट पर बैठने का मन नहीं करता ; परन्तु अब सभी ब्लागों पर [ रोमांटिक रचनाएं , मेरी ग़ज़ल/प्रसन्नवदनचतुर्वेदी और मेरे गीत/प्रसन्नवदनचतुर्वेदी पर ] नई रचनाएँ पोस्ट कर रहा हूँ , आशा है आप का स्नेह हर रचना को मिलेगा ... यहाँ इस रचना के साथ मैं पुनः उपस्थित हूँ-
पास आओ तो बात बन जाए।
दिल मिलाओ तो बात बन जाए।
बात गम से अगर बिगड़ जाए,
मुस्कुराओ तो बात बन जाए।
बीच तेरे मेरे जुदाई है,
याद आओ तो बात बन जाए।
तुमको देखा नहीं कई दिन से,
आ भी जाओ तो बात बन जाए।
साथ मेरे वही मुहब्बत का,
गीत गाओ तो बात बन जाए।
नफरतों से फ़िजा बिगड़ती है ,
दिल लगाओ तो बात बन जाए।
Tuesday, June 30, 2009
Monday, June 8, 2009
ग़ज़ल/तेरी नाराज़गी का क्या कहना
तेरी नाराज़गी का क्या कहना ।
अपनी दीवानगी का क्या कहना ।
कट रही है तुझे मनाने में,
मेरी इस जिंदगी का क्या कहना ।
तेरी गलियों की खाक छान रहा,
मेरी आवारगी का क्या कहना ।
तेरी मुस्कान से भरी महफ़िल,
मेरी वीरानगी का क्या कहना ।
जान पर मेरे बन गई लेकिन,
तेरी इस दिल्लगी का क्या कहना ।
इतनी आसानी से मना करना,
तेरी इस सादगी का क्या कहना ।
कोशिशें सब मेरी हुयी जाया,
ऐसी बेचारगी का क्या कहना ।
अपनी दीवानगी का क्या कहना ।
कट रही है तुझे मनाने में,
मेरी इस जिंदगी का क्या कहना ।
तेरी गलियों की खाक छान रहा,
मेरी आवारगी का क्या कहना ।
तेरी मुस्कान से भरी महफ़िल,
मेरी वीरानगी का क्या कहना ।
जान पर मेरे बन गई लेकिन,
तेरी इस दिल्लगी का क्या कहना ।
इतनी आसानी से मना करना,
तेरी इस सादगी का क्या कहना ।
कोशिशें सब मेरी हुयी जाया,
ऐसी बेचारगी का क्या कहना ।
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