दिनांक 20-08-09 को वाराणसी में नई दिल्ली से पधारे श्री अमित दहिया ‘बादशाह’,कुलदीप खन्ना,सुश्री शिखा खन्ना,विकास आदि की उपस्थिति में श्री उमाशंकर चतुर्वेदी‘कंचन’ के निवास स्थान पर एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें इनके अतिरिक्त देवेन्द्र पाण्डेय,नागेश शाण्डिल्य,विन्ध्याचल पाण्डेय,प्रसन्न वदन चतुर्वेदी,शिवशंकर ‘बाबा’,अख्तर बनारसी आदि कवि मित्रों ने भाग लेकर काव्य-गोष्ठी को एक ऊचाँई प्रदान
की।प्रस्तुत काव्य-गोष्ठी के कुछ चित्र मेरे ब्लॉग '
कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो' पर देंखे ....
आप दिल की जुबां समझते हैं।
फिर भी अनजान बन के रहते हैं।
खूब मालूम आप को ये है,
हम यहाँ किससे प्यार करते हैं।
है ये दस्तूर ले के देने का,
दिल मेरा ले के अब मुकरते हैं।
मुझको मालूम है अकेले में,
आप मेरे लिए सुबकते हैं।
हर हसीं को गुमा ये होता है,
लोग सारे ये मुझपे मरते हैं।
उनको देखें नहीं भला क्यों जब,
इतना मेरे लिये संवरते हैं।
दूसरा जब भी आप को देखे,
जख्म दिल मे नयें उभरते हैं।
हुश्न में कुछ न कुछ तो है यारों,
इसपे इक बार सब फिसलते हैं।
छुप के देखा है मुझे तुमने भी,
जैसे हम रोज़-रोज़ करते हैं।
कीजिए खुल के कीजिए इकरार,
कितने इसके लिए तरसते हैं।
मैनें देखा है पूरी दुनिया में,
लोग छुप-छुप के प्यार करते हैं।
वो जवां जबसे, है नज़र सबकी,
क्यूं ,कहाँ,कैसे,कब गुजरते हैं।
हुश्न वालों को शर्म आती नहीं,
इश्क वाले ही अब झिझकते हैं।