Sunday, July 15, 2012

सूचना-सारी रचनाएं अब 'गीत, ग़ज़ल, कविता की दुनिया' ब्लॉग पर

मित्रों ! जैसे-जैसे समय बीत रहा है हम सभी ब्लागरों को ज्ञान प्राप्त हो रहा है कि कई-कई ब्लागों से अच्छा है एक ही ब्लाग होना। मैनें अपने तीन व्यक्तिगत ब्लागों “ग़ज़लों का ब्लॉग”,“गीतों का ब्लॉग” और “रोमांटिक रचनाएंब्लॉग को एक ही ब्लॉग "गीत, ग़ज़ल, कविता की दुनिया" में समाहित किया है | “बनारस के कवि और शायर” और “समकालीन ग़ज़ल" ब्लॉग को भी "गीत, ग़ज़ल, कविता की दुनिया" में ही समाहित कर दिया है | 
इस ब्लॉग की सारी रचनाएं अब गीत, ग़ज़ल, कविता की दुनिया ब्लॉग पर देखें |

Thursday, September 3, 2009

‘‘मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी''

अब मैनें अपने सभी निजी ब्लागों जैसे ‘मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ को एक ही ब्लाग मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी'' में पिरो दिया है।दरअसल मैं चाहता हूँ कि आप मेरी हर रचना देंखें परन्तु सभी दर्शकगण और पाठक अलग-अलग ब्लाग्स पर सभी रचनाएं नहीं पढ़ पाते थे।सभी अनुसरणकर्ता बन्धुओं और मित्रों से अनुरोध है कि वे मेरे इस ब्लाग मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी'' का एक बार पुनः अनुसरण कर लें;असुविधा के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ।आशा है आप को मेरा ये प्रयोग पसन्द आयेगा।
अब मेरी नई रचनायें ‘‘मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी'' पर देखें....
भारत के दूसरे विभिन्न रचनाकारों के लिए “बनारस के कवि और शायर” तथा “समकालीन ग़ज़ल“ को भी “फुलवारी”ब्लॉग में समाहित कर दिया है | इसी ब्लॉग में सामाजिक सरोकार, खेल, संगीत, फिल्म से जुड़े लेख भी आप पढ़ सकते हैं | साथ ही मेरी बेटी शाम्भवी के गाये गीत-संगीत का आनंद भी उठा सकते हैं|

Friday, August 28, 2009

ग़ज़ल/मुझे तनहाइयां भाती नहीं है

मुझे तनहाइयां भाती नहीं हैं।
मैं तन्हा हूँ तू क्यों आती नही है।

तुझे ना देख लें जबतक ये नज़रें,
सुकूं पल भर भी ये पाती नहीं है।

गये हो दूर तुम जबसे यहाँ से,
बहारें भी यहाँ आती नहीं है।

तराने गूंजते थे कल तुम्हारे,
वहाँ कोयल भी अब गाती नही है।

तुझे अपना बनाना चाहता था,
कसक दिल की अभी जाती नही है।

शिकायत है यही किस्मत से अपने,
मुझे ये तुमसे मिलवाती नही है।



कृपया बनारस के कवि/शाय,समकालीन ग़ज़ल [पत्रिका] में नई ग़ज़लें जरूर देंखे ...

Sunday, July 12, 2009

ग़ज़ल/आप दिल की जुबां समझते हैं

दिनांक 20-08-09 को वाराणसी में नई दिल्ली से पधारे श्री अमित दहिया ‘बादशाह’,कुलदीप खन्ना,सुश्री शिखा खन्ना,विकास आदि की उपस्थिति में श्री उमाशंकर चतुर्वेदी‘कंचन’ के निवास स्थान पर एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें इनके अतिरिक्त देवेन्द्र पाण्डेय,नागेश शाण्डिल्य,विन्ध्याचल पाण्डेय,प्रसन्न वदन चतुर्वेदी,शिवशंकर ‘बाबा’,अख्तर बनारसी आदि कवि मित्रों ने भाग लेकर काव्य-गोष्ठी को एक ऊचाँई प्रदान की।प्रस्तुत काव्य-गोष्ठी के कुछ चित्र मेरे ब्लॉग 'कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो' पर देंखे ....


आप
दिल की जुबां समझते हैं।
फिर भी अनजान बन के रहते हैं।

खूब मालूम आप को ये है,
हम यहाँ किससे प्यार करते हैं।

है ये दस्तूर ले के देने का,
दिल मेरा ले के अब मुकरते हैं।

मुझको मालूम है अकेले में,
आप मेरे लिए सुबकते हैं।

हर हसीं को गुमा ये होता है,
लोग सारे ये मुझपे मरते हैं।

उनको देखें नहीं भला क्यों जब,
इतना मेरे लिये संवरते हैं।

दूसरा जब भी आप को देखे,
जख्म दिल मे नयें उभरते हैं।

हुश्न में कुछ न कुछ तो है यारों,
इसपे इक बार सब फिसलते हैं।

छुप के देखा है मुझे तुमने भी,
जैसे हम रोज़-रोज़ करते हैं।

कीजिए खुल के कीजिए इकरार,
कितने इसके लिए तरसते हैं।

मैनें देखा है पूरी दुनिया में,
लोग छुप-छुप के प्यार करते हैं।

वो जवां जबसे, है नज़र सबकी,
क्यूं ,कहाँ,कैसे,कब गुजरते हैं।

हुश्न वालों को शर्म आती नहीं,
इश्क वाले ही अब झिझकते हैं

Sunday, July 5, 2009

दूर रहकर भी मेरे पास हो तुम

दूर रहकर भी मेरे पास हो तुम।
जिसको ढूंढू वही तलाश हो तुम।

प्यार जो पहली-पहली बार हुआ,
मेरे उस प्यार का अह्सास हो तुम।

इस जहाँ में बहुत से चेहरे हैं,
इन सभी में बहुत ही खास हो तुम।

तेरा-मेरा मिलन तो फिर होगा,
ऐ मेरे यार क्यों उदास हो तुम।

तुमसे ही मेरी हर तमन्ना है,
मेरी हसरत हो मेरी आस हो तुम।

Tuesday, June 30, 2009

ग़ज़ल/प्रसन्न वदन चतुर्वेदी/पास आओ तो बात बन जाए

कई दिनों बाद इस ब्लाग पर कोई रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ।देर की वजह कुछ तो "समकालीन ग़ज़ल [पत्रिका] ","बनारस के कवि/शायर "में व्यस्तता थी;कुछ मौसम का भी असर था।दरअसल गर्म मौसम में नेट पर बैठने का मन नहीं करता ; परन्तु अब सभी ब्लागों पर [ रोमांटिक रचनाएं , मेरी ग़ज़ल/प्रसन्नवदनचतुर्वेदी और मेरे गीत/प्रसन्नवदनचतुर्वेदी पर ] नई रचनाएँ पोस्ट कर रहा हूँ , आशा है आप का स्नेह हर रचना को मिलेगा ... यहाँ इस रचना के साथ मैं पुनः उपस्थित हूँ-

पास आओ तो बात बन जाए।
दिल मिलाओ तो बात बन जाए।

बात गम से अगर बिगड़ जाए,
मुस्कुराओ तो बात बन जाए।

बीच तेरे मेरे जुदाई है,
याद आओ तो बात बन जाए।

तुमको देखा नहीं कई दिन से,
आ भी जाओ तो बात बन जाए।

साथ मेरे वही मुहब्बत का,
गीत गाओ तो बात बन जाए।

नफरतों से फ़िजा बिगड़ती है ,
दिल लगाओ तो बात बन जाए।

Monday, June 8, 2009

ग़ज़ल/तेरी नाराज़गी का क्या कहना

तेरी नाराज़गी का क्या कहना ।
अपनी दीवानगी का क्या कहना ।

कट रही है तुझे मनाने में,
मेरी इस जिंदगी का क्या कहना ।

तेरी गलियों की खाक छान रहा,
मेरी आवारगी का क्या कहना ।

तेरी मुस्कान से भरी महफ़िल,
मेरी वीरानगी का क्या कहना ।

जान पर मेरे बन गई लेकिन,
तेरी इस दिल्लगी का क्या कहना ।

इतनी आसानी से मना करना,
तेरी इस सादगी का क्या कहना ।

कोशिशें सब मेरी हुयी जाया,
ऐसी बेचारगी का क्या कहना ।

Saturday, May 30, 2009

मुहब्बत है मुहब्बत है मुझे तुमसे मुहब्बत है।

मुहब्बत है मुहब्बत है मुझे तुमसे मुहब्बत है।
जरुरत है जरुरत है मुझे तेरी जरुरत है |

है गोरा रंग तेरा काली आँखें सुर्ख लब तेरे,
कि चाहत है हाँ चाहत है मुझे इनकी ही चाहत है।

तुम इतनी खूबसूरत हो कि हर तारीफ़ कम होगी,
कयामत है कयामत है हुश्न तेरा कयामत है ।

खुदाई इश्क है तेरा और तू है खुदा मेरी,
इबादत है इबादत है इश्क मेरा इबादत है।

मुझे भी देख लेते हो कभी तुम अपनी आँखों से,
इनायत है इनायत है तुम्हारी ये इनायत है।

तसव्वुर में तुम्हें लाता हूँ तो मुझको ऐसा लगता है,
जियारत है जियारत है यही तेरी जियारत है।

ये मेरा दिल लो तुम ले लो जैसे चाहो इस से खेलो,
इजाज़त है इजाज़त है तुम्हें इसकी इजाज़त है।

Thursday, May 14, 2009

सबसे प्यारा है महबूब का गम

शहर से बाहर होने के कारण मैं ४-५ दिन विलम्ब से आप को नई रचना दे रहा हूँ।आशा है आप इस देर को माफ़ करेंगे......

सबसे प्यारा है ये महबूब का ग़म।
सबसे न्यारा है ये महबूब का ग़म।


ग़म की दुनिया का इक चमकता हुआ,
इक सितारा है ये महबूब का ग़म।


जिन्दगी ये वीरान जीने को,
इक सहारा है ये महबूब का ग़म।


और सब ग़म तो भंवर जैसे हैं,
बस किनारा है ये महबूब का ग़म।


और कुछ भी मुझे गंवारा नहीं,
बस गंवारा है ये महबूब का ग़म।


सारी दुनिया चलो तुम्हारी है,
जो हमारा है ये महबूब का ग़म।

Sunday, May 3, 2009

तू मुझको याद रखना,मेरी बात याद रखना

तू मुझको याद रखना,मेरी बात याद रखना।
गुजरे जो खूबसूरत , लम्हात याद रखना।


बादल बरसने वाले ,आँखों में जब भी छाए;
मेरे साथ भींगने की,बरसात याद रखना।


तुमसे जुदा हो जाऊं,मैं कब ये चाहता था;
काबू में नहीं होते ,हालात याद रखना।


ग़मगीन तुम न होना,कभी इन जुदाइयों से;
मैं हूँ तुम्हारे दिल में तेरे साथ याद रखना।


नहीं आ सकूंगा मैं तो,तेरे पास ग़म न करना,
तू अपने मुहब्बत की, सौगात याद रखना।


मेंहदी लगी न तुझको,सेहरा न मैंने बाँधा;
तो क्या हुआ यादों की,बारात याद रखना।

Sunday, April 26, 2009

ग़ज़ल/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी/आप की जब थी जरूरत

आप की जब थी जरूरत, आप ने धोखा दिया।
हो गई रूसवा मुहब्बत , आप ने धोखा दिया।


बेवफ़ा होते हैं अक्सर, हुश्नवाले ये सभी;
जिन्दगी ने ली नसीहत, आप ने धोखा दिया।


खुद से ज्यादा आप पर मुझको भरोसा था कभी;
झूठ लगती है हकीकत, आप ने धोखा दिया।


दिल मे रहकर आप का ये दिल हमारा तोड़ना;
हम करें किससे शिकायत,आप ने धोखा दिया।


पार करने वाला माझी खुद डुबाने क्यों लगा;
कर अमानत में खयानत,आप ने धोखा दिया।

Saturday, April 18, 2009

तुमसे कोई गिला नही है

बी०म्यूज० के दौरान कुछ जब कोई नया राग सीखता था,तो प्रयास करता था कि उस राग पर कोई रचना लिखूँ।यह उसी का परिणाम है। राग शुद्ध कल्याण में बनायी इसकी धुन मुझे बहुत प्रिय है,रचना तो पसन्द है ही। अब आप को यह कैसी लगती है,ये देखना है.......


तुमसे कोई गिला नहीं है।
प्यार हमेशा मिला नहीं है।

कांटे भी खिलते हैं चमन में,
फ़ूल हमेशा खिला नहीं है।

जिसको मंज़िल मिल ही जाए,
ऐसा हर काफ़िला नहीं है।

सदियों से होता आया है,
ये पहला सिलसिला नहीं है।

अनचाही हर चीज मिली है,
जो चाहा वो मिला नहीं है।

देर से तुम इसको समझोगे,
जफ़ा, वफ़ा का सिला नहीं है।

जिस्म का नाजुक हिस्सा है दिल,
ये पत्थर का किला नहीं है।


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Sunday, April 12, 2009

नाराजगी भी है तुमसे प्यार भी तो है

नाराजगी भी है तुमसे प्यार भी तो है ।
दिल तोड़ने वाले तू मेरा यार भी तो है ।

मुझे बेकरार कर गयी है ये तेरी बेरुखी,
और उसपे सितम ये तू ही करार भी तो है।


जब चाहता हूँ इतना तो क्यों ख़फ़ा न होऊं,
तेरे बिना मेरा जीना दुश्वार भी तो है ।


तुमसे ही मेरी जिन्दगी वीरान हुई है,
तुमसे ही जिन्दगी ये खुशगवार भी तो है।


दोनों के लुत्फ़ हैं यहां इस एक इश्क में,
कुछ जीत भी है इश्क में कुछ हार भी तो है।


वैसे तो मेरा दिल जरूर तुमसे ख़फ़ा है,
तुमको ही ढूंढता ये बार बार भी तो है ।


Sunday, April 5, 2009

सुनने के लिए है न सुनाने के लिए है

अपनी ये रचना मैं स्वर्गीय मोहम्मद सलीम राही को समर्पित करता हूँ जो आकाशवाणी वाराणसी में कार्यरत थे और एक अच्छे शायर थे।उन्होंने मेरी ग़ज़लों को बहुत सराहा और ये रचना उन्हें बहुत अच्छी लगती थी।इसको उन्हीं की वजह से सेतु [ एक संस्था जिसमें संगीतमय प्रस्तुति होती थी ] में शामिल किया गया था और इसे ambika keshari ने अपनी आवाज़ दी थी।


सुनने के लिए है न सुनाने के लिए है ।
ये बात अभी सबसे छुपाने के लिए है ।

संसार के बाज़ार में बेचो न इसे तुम ,
ये बात अभी दिल के खजाने के लिए है ।

इस बात की चिंगारी अगर फ़ैल गयी तो ,
तैयार जहाँ आग लगाने के लिए है ।

आंसू कभी आ जाए तो जाहिर न ये करना ,
ये गम तेरा मुझ जैसे दीवाने के लिए है ।

होता रहा है होगा अभी प्यार पे सितम ,
ये बात जमानों से ज़माने के लिए है ।

तुम प्यार की बातों को जुबां से नहीं कहना ,
ये बात निगाहों से बताने के लिए है ।

Saturday, March 21, 2009

रोमांटिक रचनाएं /प्रसन्न वदन चतुर्वेदी

सभी गीत ग़ज़ल प्रेमियों को मेरा नमस्कार,
मैं प्रसन्न वदन चतुर्वेदी आप का इस ब्लॉग में स्वागत

करता हूँ । यहाँ हम कुछ रोमांटिक गीत ग़ज़लों का आनंद
लेंगे और कुछ बातचीत भी करेंगे । आशा है ये आप को
बेहद पसंद आयेंगे । आप के विचारों का मुझे बेसब्री से
इन्तजार रहेगा......