Sunday, April 5, 2009

सुनने के लिए है न सुनाने के लिए है

अपनी ये रचना मैं स्वर्गीय मोहम्मद सलीम राही को समर्पित करता हूँ जो आकाशवाणी वाराणसी में कार्यरत थे और एक अच्छे शायर थे।उन्होंने मेरी ग़ज़लों को बहुत सराहा और ये रचना उन्हें बहुत अच्छी लगती थी।इसको उन्हीं की वजह से सेतु [ एक संस्था जिसमें संगीतमय प्रस्तुति होती थी ] में शामिल किया गया था और इसे ambika keshari ने अपनी आवाज़ दी थी।


सुनने के लिए है न सुनाने के लिए है ।
ये बात अभी सबसे छुपाने के लिए है ।

संसार के बाज़ार में बेचो न इसे तुम ,
ये बात अभी दिल के खजाने के लिए है ।

इस बात की चिंगारी अगर फ़ैल गयी तो ,
तैयार जहाँ आग लगाने के लिए है ।

आंसू कभी आ जाए तो जाहिर न ये करना ,
ये गम तेरा मुझ जैसे दीवाने के लिए है ।

होता रहा है होगा अभी प्यार पे सितम ,
ये बात जमानों से ज़माने के लिए है ।

तुम प्यार की बातों को जुबां से नहीं कहना ,
ये बात निगाहों से बताने के लिए है ।

4 comments:

  1. आंसू कभी आ जाए तो जाहिर न ये करना ,
    ये गम तेरा मुझ जैसे दीवाने के लिए है ।

    " behd khubsurat gazal....ye sher to jaise maire dil ko chu gya or apnaa hi sa lga.."

    regards

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  2. वाह !! वाह !! बहुत खूब !! सुन्दर ग़ज़ल !!! वाह !!

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  3. वाह...क्या बात है...बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है...इसी से मिलती जुलती जनाब जाँ निसार अख्तर साहेब की ग़ज़ल " अशआर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं...कुछ शेर मगर तुमको सुनाने के लिए हैं..." याद आ गयी...शुक्रिया.
    नीरज

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  4. aapki sabhi gazale behad khoobsurat umda aur dil ko sparsh karti hai .jyoti

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