Sunday, April 26, 2009

ग़ज़ल/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी/आप की जब थी जरूरत

आप की जब थी जरूरत, आप ने धोखा दिया।
हो गई रूसवा मुहब्बत , आप ने धोखा दिया।


बेवफ़ा होते हैं अक्सर, हुश्नवाले ये सभी;
जिन्दगी ने ली नसीहत, आप ने धोखा दिया।


खुद से ज्यादा आप पर मुझको भरोसा था कभी;
झूठ लगती है हकीकत, आप ने धोखा दिया।


दिल मे रहकर आप का ये दिल हमारा तोड़ना;
हम करें किससे शिकायत,आप ने धोखा दिया।


पार करने वाला माझी खुद डुबाने क्यों लगा;
कर अमानत में खयानत,आप ने धोखा दिया।

11 comments:

  1. kya baat hai . lagta hai gajlo ke bahut saukin hai .

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  2. bahut umda
    अच्छा लिखा है आपने और सत्य भी , शानदार लेखन के लिए धन्यवाद ।

    मयूर दुबे
    अपनी अपनी डगर

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  3. बहुत लाजवाब. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  4. दिल मे रहकर आप का ये दिल हमारा तोड़ना;
    हम करें किससे शिकायत,आप ने धोखा दिया।

    अच्छा लिखा है आपने और सत्य भी , शानदार लेखन के लिए धन्यवाद ।

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  5. बहुत अच्‍छी गज़ल थी, बहुत अच्‍छा गला आपके ब्‍लाग पर आ कर भी।

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  6. दिल मे रहकर आप का ये दिल हमारा तोड़ना;
    हम करें किससे शिकायत,आप ने धोखा दिया।
    bahut khoob!!

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  7. ठान ले तो जर्रे जर्रे को थर्रा सकते है । कोई शक । बिल्कुल नही .....
    बेवफ़ा होते हैं अक्सर, हुश्नवाले ये सभी;
    जिन्दगी ने ली नसीहत, आप ने धोखा दिया....
    bahut badhiya sir gaate aur gungunaate rahiye..

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  8. बहुत बहुत शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए!
    आपने बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लिखा है!

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  9. मुझे ज़िन्दगी से गिला ऱहा,
    मेरी ज़िन्दगी से बनी नहीं,

    मैं खडा हूं ऐसे मकाम पर,
    जहां हसरतों की कमी नही...

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  10. Hi!

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