Sunday, July 12, 2009

ग़ज़ल/आप दिल की जुबां समझते हैं

दिनांक 20-08-09 को वाराणसी में नई दिल्ली से पधारे श्री अमित दहिया ‘बादशाह’,कुलदीप खन्ना,सुश्री शिखा खन्ना,विकास आदि की उपस्थिति में श्री उमाशंकर चतुर्वेदी‘कंचन’ के निवास स्थान पर एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें इनके अतिरिक्त देवेन्द्र पाण्डेय,नागेश शाण्डिल्य,विन्ध्याचल पाण्डेय,प्रसन्न वदन चतुर्वेदी,शिवशंकर ‘बाबा’,अख्तर बनारसी आदि कवि मित्रों ने भाग लेकर काव्य-गोष्ठी को एक ऊचाँई प्रदान की।प्रस्तुत काव्य-गोष्ठी के कुछ चित्र मेरे ब्लॉग 'कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो' पर देंखे ....


आप
दिल की जुबां समझते हैं।
फिर भी अनजान बन के रहते हैं।

खूब मालूम आप को ये है,
हम यहाँ किससे प्यार करते हैं।

है ये दस्तूर ले के देने का,
दिल मेरा ले के अब मुकरते हैं।

मुझको मालूम है अकेले में,
आप मेरे लिए सुबकते हैं।

हर हसीं को गुमा ये होता है,
लोग सारे ये मुझपे मरते हैं।

उनको देखें नहीं भला क्यों जब,
इतना मेरे लिये संवरते हैं।

दूसरा जब भी आप को देखे,
जख्म दिल मे नयें उभरते हैं।

हुश्न में कुछ न कुछ तो है यारों,
इसपे इक बार सब फिसलते हैं।

छुप के देखा है मुझे तुमने भी,
जैसे हम रोज़-रोज़ करते हैं।

कीजिए खुल के कीजिए इकरार,
कितने इसके लिए तरसते हैं।

मैनें देखा है पूरी दुनिया में,
लोग छुप-छुप के प्यार करते हैं।

वो जवां जबसे, है नज़र सबकी,
क्यूं ,कहाँ,कैसे,कब गुजरते हैं।

हुश्न वालों को शर्म आती नहीं,
इश्क वाले ही अब झिझकते हैं

21 comments:

  1. बहुत बढ़ियाँ चतुर्वेदी जी,
    आपकी प्यार की सुंदर अभिव्यक्ति पढ़ी,
    बहुत ही अच्छा लगा....

    विशेष रूप से ये लाइन..

    छुप के देखा है मुझे तुमने भी,
    जैसे हम रोज़-रोज़ करते हैं।

    बधाई देने के साथ दिल से दुआ करता हूँ,
    ऐसे ही सुंदर सुंदर शायरी से बनारस के काव्यभूमि को सजाते रहिए.
    हम भी आपके साथ रहेंगे..

    धन्यवाद...

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  2. है ये दस्तूर ले के देने का,
    दिल मेरा ले के अब मुकरते हैं।

    वाह जी.... बड़े बेअदब निकले ....!!

    हर हसीं को गुमा ये होता है,
    लोग सारे ये मुझपे मरते हैं।

    बहुत खूब.....!!

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  3. Abhi to kuchh padha nahee..ye ek rachnake alawa..jo behad sundar hai,kahnekee zaroorat hee nahee..kaath kangan ko aarsee kya dikhayen!

    http://shamasansmaran.blogspot.com

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  4. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ....दूसरा जब भी आपको देखें ,जख्म दिल में नये उभरते है ....इन पंक्तिओं ने दिल को छू लिया .......(अरुण मिश्रा)

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  5. कीजिए खुल के कीजिए इकरार,
    कितने इसके लिए तरसते हैं।

    मैनें देखा है पूरी दुनिया में,
    लोग छुप-छुप के प्यार करते हैं।
    sundar bahut hi .

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  6. बेहद रोचक गजल लिखा है आपने । इसी तरह से लिखते रहिए । शुक्रिया

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  7. aapki romantic rachna padkar achcha laga........

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  8. मैनें देखा है पूरी दुनिया में,
    लोग छुप-छुप के प्यार करते हैं।

    बहुत अच्छा शेर एक शेर याद हो आया इसे पढकर-
    लोग छुप-छ्प के प्यार करते हैं,
    प्यार करना गुनाह हो जैसे.

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  9. मैनें देखा है पूरी दुनिया में,
    लोग छुप-छुप के प्यार करते हैं।

    बहुत अच्छा शेर एक शेर याद हो आया इसे पढकर-
    लोग छुप-छुप के प्यार करते हैं,
    प्यार करना गुनाह हो जैसे.

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  10. ... कमाल है, छा गये !!!

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  11. Bahut sundar abhivyakti...badhai.

    स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें. "शब्द सृजन की ओर" पर इस बार-"समग्र रूप में देखें स्वाधीनता को"

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  12. वो जवां जबसे, है नज़र सबकी,
    क्यूं ,कहाँ,कैसे,कब गुजरते हैं।
    बढियां लिखते हैं आप !

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  13. नाम - प्रसन्न वदन चतुर्वेदी जन्म दिन - 22-11-70 जन्म स्थान -गाजीपुर शिक्षा - बी० एससी0 , एल०एल०बी०, बी० म्यूज०[गोल्ड मेडलिस्ट ], एम०म्यूज० , तबला वादन में द्विवर्षीय डिप्लोमा....क्या बात है यार....तुम तो मेरे यार ही हो.....तुम्हारी ये सारी खूबियाँ मुझमें भी हैं....(शायद थीं....!!)अगर कभी,कहीं हम मिलें.....!!गज़ब लिखते हो यार.....!!

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  14. वाह बहुत बढ़िया लिखा है आपने! स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!

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  15. vakaalat peshe ke saath saath... itna sab kaise kar lete hain chaturvedi ji..

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  16. खूब मालूम आपको ये है
    हम यहां किससे प्यार करते हैं
    वाह!! क्या खूब लिखा...

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  17. बहुत अच्छे वक्तव्य हैं-

    "कीजिए खुल के कीजिए इकरार,
    कितने इसके लिए तरसते हैं।
    मैनें देखा है पूरी दुनिया में,
    लोग छुप-छुप के प्यार करते हैं।"

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  18. हुश्न में कुछ न कुछ तो है यारों,
    इसपे इक बार सब फिसलते हैं।

    badi hi saadgi se itna pyara chhipa-chhipa-sa
    sach aapne hm sb se saanjha kar liya
    waah-wa....
    ---MUFLIS---

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